जीवन में सफलता हासिल करने का वैसे तो कोई निश्चित फार्मूला नहीं है, लेकिन मनुष्य सात आध्यात्मिक नियमों को अपनाकर कामयाबी के शिखर को छू सकता है।
ला जोला कैलीफोॢनया में द चोपड़ा सेंटर फार वेल बीइंग, के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी डॉ. दीपक चोपड़ा ने अपनी पुस्तक सफलता के सात आध्यात्मिक नियम में सफलता के लिए जरूरी बातों का उल्लेख करते हुए बताया है कि कामयाबी हासिल करने के लिए अच्छा स्वास्थ्यश् ऊर्जाश् मानसिक स्थिरता, अच्छा बनने की समझ और मानसिक शांति आवश्यक है।
एजलेस बाडी, टाइमलेस माइंड और क्वांटम हीङ्क्षलग जैसी २६ लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक डॉ. चोपड़ा के अनुसार सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति में विशुद्ध सामथ्र्य, दान, कर्म, अल्प प्रयास, उद्देश्य और इच्छा, अनासक्ति और धर्म का होना आवश्यक है।
विशुद्ध सामथ्र्य का नियम इस तथ्य पर आधारित है कि व्यक्ति मूल रूप से विशुद्ध चेतना है, जो सभी संभावनाओं और असंख्य रचनात्मकताओं का कार्यक्षेत्र है । इस क्षेत्र तक पहुंचने का एक ही रास्ता है, प्रतिदिन मौन, ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना । व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन, बोलने की प्रकिया से दूर, रहना चाहिए और दिन में दो बार आधे घंटे सुबह और आधे घंटे शाम अकेले बैठकर ध्यान लगाना चाहिए । इसी के साथ उसे प्रतिदिन प्रकृति के साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और हर जैविक वस्तु की बौद्धिक शक्ति का चुपचाप अवलोकन करना चाहिए । शांत बैठकर सूर्यास्त देखें, समुद्र या लहरों की आवाज सुनें तथा फूलों की सुगंध को महसूस करें । विशुद्ध सामथ्र्य को पाने की एक अन्य विधि अनिर्णय का अभ्यास करना है। सही और गलत, अच्छे और बुरे के अनुसार वस्तुओं का निरंतर मूल्यांकन , निर्णय है । व्यक्ति जब लगातार मूल्यांकन, वर्गीकरण और विश्लेषण में लगा रहता है तो उसके अन्तर्मन में द्वंद्व उत्पन्न होने लगता है जो विशुद्ध सामथ्र्य और व्यक्ति के बीच ऊर्जा के प्रवाह को रोकने का काम करता है । चूंकि अनिर्णय की स्थिति दिमाग को शांति प्रदान करती है, इसलिए व्यक्ति को अनिर्णय का अभ्यास करना चाहिए । अपने दिन की शुरुआत इस वक्तव्य से करनी चाहिए आज जो कुछ भी घटेगा, उसके बारे में मैं कोई निर्णय नहीं लूंगा और पूरे दिन निर्णय न लेने का ध्यान रखूंगा।
सफलता का दूसरा आध्यात्मिक नियम है देने का नियम, इसे लेन, देन का नियम भी कहा जा सकता है । पूरा गतिशील ब्रह्मांड विनियम पर ही आधारित है । लेना और देना संसार में ऊर्जा प्रवाह के दो भिन्न-भिन्न पहलू हैं । व्यक्ति जो पाना चाहता है, उसे दूसरों को देने की तत्परता से संपूर्ण विश्व में जीवन का संचार करता रहता है । देने के नियम का अभ्यास बहुत ही आसान है । यदि व्यक्ति खुश रहना चाहता है तो दूसरों को खुश रखे और यदि प्रेम पाना चाहता है तो दूसरों के प्रति प्रेम की भावना रखे । यदि वह चाहता है कि कोई उसकी देखभाल और सराहना करे तो उसे भी दूसरों की देखभाल और सराहना करना सीखना चाहिए । यदि मनुष्य भौतिक सुख, समृद्धि हासिल करना चाहता है तो उसे दूसरों को भी भौतिक सुख, समृद्धि प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।
सफलता का तीसरा आध्यात्मिक नियम कर्म का नियम है । कर्म में क्रिया और उसका परिणाम दोनों शामिल हैं । स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कर्म मानव स्वतंत्रता की शाश्वत घोषणा है हमारे विचार, शब्द और कर्म, वे धागे हैं, जिनसे हम अपने चारों ओर एक जाल बुन लेते हैं । वर्तमान में जो कुछ भी घट रहा है, वह व्यक्ति को पसंद हो या नापसंद, उसी के चुनावों का परिणाम है, जो उसने कभी पहले किये होते हैं । कर्म, कारण और प्रभाव के नियम पर इन बातों पर ध्यान देकर आसानी से अमल किया जा सकता है आज से मैं हर चुनाव का साक्षी रहूंगा और इन चुनावों के प्रति पूर्णत: साक्षीत्व को अपनी चेतन जागरूकता तक ले जाऊंगा । जब भी मैं चुनाव करूंगा तो स्वयं से दो प्रश्न पूछूंगा, जो चुनाव मैं करने जा रहा हूं, उसके नतीजे क्या होंगे और क्या यह चुनाव मेरे और इससे प्रभावित होने वाले लोगों के लिए लाभदायक और इच्छा की पूॢत करने वाला होगा। यदि चुनाव की अनुभूति सुखद है तो मैं यथाशीघ्र वह काम करूंगा, लेकिन यदि अनुभूति द:ुखद होगी तो मैं रुककर अंतर्मन में अपने कर्म के परिणामों पर एक नजर डालूंगा । इस प्रकार मैं अपने तथा मेरे आसपास के जो लोग हैं, उनके लिए सही निर्णय लेने में सक्षम हो सकूंगा।
सफलता का चौथा नियम अल्प प्रयास का नियम है । यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति प्रयत्न रहित सरलता और अत्यधिक आजादी से काम करती है । यही अल्प प्रयास यानी विरोध रहित प्रयास का नियम है । प्रकृति के काम पर ध्यान देने पर पता चलता है कि उसमें सब कुछ सहजता से गतिमान है । घास उगने की कोशिश नहीं करती, स्वयं उग आती है । मछलियां तैरने की कोशिश नहीं करतीं, खुद तैरने लगती हैं, फूल खिलने की कोशिश नहीं करते, खुद खिलने लगते हैं और पक्षी उडने की कोशिश किए बिना स्वयं ही उडते हैं । यह उनकी स्वाभाविक प्रकृति है । इसी तरह मनुष्य की प्रकृति है कि वह अपने सपनों को बिना किसी कठिन प्रयास के भौतिक रूप दे सकता है । मनुष्य के भीतर कहीं हल्का सा विचार छिपा रहता है, जो बिना किसी प्रयास के मूर्त रूप ले लेता है । इसी को सामान्यत: चमत्कार कहते हैं, लेकिन वास्तव में यह अल्प प्रयास का नियम है।
अल्प प्रयास के नियम का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए इन बातों पर ध्यान देना होगा मैं स्वीकृति का अभ्यास करूंगा । आज से मैं घटनाओं, स्थितियों, परिस्थितियों और लोगों को जैसे हैं, वैसे ही स्वीकार करूंगा, उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार ढालने की कोशिश नहीं करूंगा । मैं यह जान लूंगा कि यह क्षण जैसा है, वैसा ही होना था, क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ऐसा ही है । मैं इस क्षण का विरोध करके पूरे ब्रह्मांड से संघर्ष नहीं करूंगा, मेरी स्वीकृति पूर्ण होगी । मैं उन स्थितियों का, जिन्हें मैं समस्या समझ रहा था, उनका उत्तरदायित्व स्वयं पर लूंगा । किसी दूसरे को अपनी स्थिति के लिए दोषी नहीं ठहराऊंगा । मैं यह समझूंगा कि प्रत्येक समस्या में सुअवसर छिपा है और यही सावधानी मुझे जीवन में स्थितियों का लाभ उठाकर भविष्य संवारने का मौका देगी । मेरी आज की जागृति आगे चलकर रक्षाहीनता में बदल जाएगी । मुझे अपने विचारों का पक्ष लेने की कोई जरूरत नहीं पडेगी । अपने विचारों को दूसरों पर थोपने की जरूरत भी महसूस नहीं होगी । मैं सभी विचारों के लिए अपने आपको स्वतंत्र रखूंगा ताकि एक विचार से बंधा नहीं रहूं।
सफलता का पांचवां आध्यात्मिक नियम उद्देश्य और इच्छा का नियम बताया गया है । यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति में ऊर्जा और ज्ञान हर जगह विद्यमान है । सत्य तो यह है कि क्वांटम क्षेत्र में ऊर्जा और ज्ञान के अलावा और कुछ है ही नहीं । यह क्षेत्र विशुद्ध चेतना और सामथ्र्य का ही दूसरा रूप है, जो उद्देश्य और इच्छा से प्रभावित रहता है । ऋग्वेद में उल्लेख है प्रारंभ में सिर्फ इच्छा ही थी जो मस्तिष्क का प्रथम बीज थी । मुनियों ने अपने मन पर ध्यान केन्द्रित किया और उन्हें अन्र्तज्ञान प्राप्त हुआ कि प्रकट और अप्रकट एक ही है । उद्देश्य और इच्छा के नियम का पालन करने के लिए व्यक्ति को इन बातों पर ध्यान देना होगा उसे अपनी सभी इच्छाओं को त्यागकर उन्हें रचना के गर्त के हवाले करना होगा और विश्वास कायम रखना होगा कि यदि इच्छा पूरी नहीं होती है तो उसके पीछे भी कोई उचित कारण होगा । हो सकता है कि प्रकृति ने उसके लिए इससे भी अधिक कुछ सोच रखा हो । व्यक्ति को अपने प्रत्येक कर्म में वर्तमान के प्रति सतर्कता का अभ्यास करना होगा और उसे ज्यों का त्यों स्वीकार करना होगा लेकिन उसे साथ ही अपने भविष्य को उपयुक्त इच्छाओं ओर ²ढ उद्देश्यों से संवारना होगा।
सफलता का छठा आध्यात्मिक नियम अनासक्ति का नियम है । इस नियम के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संसार में कुछ भी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं के प्रति मोह त्यागना होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उद्देश्यों को ही छोड दे । उसे केवल परिणाम के प्रति मोह को त्यागना है । व्यक्ति जैसे ही परिणाम के प्रति मोह छोड देता है, उसी वह अपने एकमात्र उद्देश्य को अनासक्ति से जोड लेता है । तब वह जो कुछ भी चाहता है, उसे स्वयमेव मिल जाता है । अनासक्ति के नियम का पालन करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना होगा आज मैं अनासक्त रहने का वायदा करता हूं । मैं स्वयं को तथा आसपास के लोगों को पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहने की आजादी दूंगा । चीजों को कैसा होना चाहिए, इस विषय पर भी अपनी राय किसी पर थोपूंगा नहीं । मैं जबरदस्ती समस्याओं के समाधान खोजकर नयी समस्याओं को जन्म नहीं दूंगा । मैं चीजों को अनासक्त भाव से लूंगा । सब कुछ जितना अनिश्चित होगा, मैं उतना ही अधिक सुरक्षित महसूस करूंगा क्योंकि अनिश्चितता ही मेरे लिए स्वतंत्रता का मार्ग सिद्ध होगी । अनिश्चितता को समझते हुए मैं अपनी सुरक्षा की खोज करूंगा।
सफलता का सातवां आध्यात्मिक नियम, धर्म का नियम, है । संस्कृत में धर्म का शाब्दिक अर्थ जीवन का उद्देश्य बताया गया है । धर्म या जीवन के उद्देश्य का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए व्यक्ति को इन विचारों पर ध्यान देना होगा मैं अपनी असाधारण योग्यताओं की सूची तैयार करूंगा और फिर इस असाधारण योग्यता को व्यक्त करने के लिए किए जाने वाले उपायों की भी सूची बनाऊंगा । अपनी योग्यता को पहचानकर उसका इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करूंगा और समय की सीमा से परे होकर अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को भी सुख,समृद्धि से भर दूंगा । हर दिन खुद से पूछूंगा मैं दूसरों का सहायक कैसे बनूं और किस प्रकार मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं । इन प्रश्नों के उत्तरों की सहायता से मैं मानव मात्र की प्रेमपूर्वक सेवा करूंगा।
ला जोला कैलीफोॢनया में द चोपड़ा सेंटर फार वेल बीइंग, के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी डॉ. दीपक चोपड़ा ने अपनी पुस्तक सफलता के सात आध्यात्मिक नियम में सफलता के लिए जरूरी बातों का उल्लेख करते हुए बताया है कि कामयाबी हासिल करने के लिए अच्छा स्वास्थ्यश् ऊर्जाश् मानसिक स्थिरता, अच्छा बनने की समझ और मानसिक शांति आवश्यक है।
एजलेस बाडी, टाइमलेस माइंड और क्वांटम हीङ्क्षलग जैसी २६ लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक डॉ. चोपड़ा के अनुसार सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति में विशुद्ध सामथ्र्य, दान, कर्म, अल्प प्रयास, उद्देश्य और इच्छा, अनासक्ति और धर्म का होना आवश्यक है।
विशुद्ध सामथ्र्य का नियम इस तथ्य पर आधारित है कि व्यक्ति मूल रूप से विशुद्ध चेतना है, जो सभी संभावनाओं और असंख्य रचनात्मकताओं का कार्यक्षेत्र है । इस क्षेत्र तक पहुंचने का एक ही रास्ता है, प्रतिदिन मौन, ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना । व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन, बोलने की प्रकिया से दूर, रहना चाहिए और दिन में दो बार आधे घंटे सुबह और आधे घंटे शाम अकेले बैठकर ध्यान लगाना चाहिए । इसी के साथ उसे प्रतिदिन प्रकृति के साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और हर जैविक वस्तु की बौद्धिक शक्ति का चुपचाप अवलोकन करना चाहिए । शांत बैठकर सूर्यास्त देखें, समुद्र या लहरों की आवाज सुनें तथा फूलों की सुगंध को महसूस करें । विशुद्ध सामथ्र्य को पाने की एक अन्य विधि अनिर्णय का अभ्यास करना है। सही और गलत, अच्छे और बुरे के अनुसार वस्तुओं का निरंतर मूल्यांकन , निर्णय है । व्यक्ति जब लगातार मूल्यांकन, वर्गीकरण और विश्लेषण में लगा रहता है तो उसके अन्तर्मन में द्वंद्व उत्पन्न होने लगता है जो विशुद्ध सामथ्र्य और व्यक्ति के बीच ऊर्जा के प्रवाह को रोकने का काम करता है । चूंकि अनिर्णय की स्थिति दिमाग को शांति प्रदान करती है, इसलिए व्यक्ति को अनिर्णय का अभ्यास करना चाहिए । अपने दिन की शुरुआत इस वक्तव्य से करनी चाहिए आज जो कुछ भी घटेगा, उसके बारे में मैं कोई निर्णय नहीं लूंगा और पूरे दिन निर्णय न लेने का ध्यान रखूंगा।
सफलता का दूसरा आध्यात्मिक नियम है देने का नियम, इसे लेन, देन का नियम भी कहा जा सकता है । पूरा गतिशील ब्रह्मांड विनियम पर ही आधारित है । लेना और देना संसार में ऊर्जा प्रवाह के दो भिन्न-भिन्न पहलू हैं । व्यक्ति जो पाना चाहता है, उसे दूसरों को देने की तत्परता से संपूर्ण विश्व में जीवन का संचार करता रहता है । देने के नियम का अभ्यास बहुत ही आसान है । यदि व्यक्ति खुश रहना चाहता है तो दूसरों को खुश रखे और यदि प्रेम पाना चाहता है तो दूसरों के प्रति प्रेम की भावना रखे । यदि वह चाहता है कि कोई उसकी देखभाल और सराहना करे तो उसे भी दूसरों की देखभाल और सराहना करना सीखना चाहिए । यदि मनुष्य भौतिक सुख, समृद्धि हासिल करना चाहता है तो उसे दूसरों को भी भौतिक सुख, समृद्धि प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।
सफलता का तीसरा आध्यात्मिक नियम कर्म का नियम है । कर्म में क्रिया और उसका परिणाम दोनों शामिल हैं । स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कर्म मानव स्वतंत्रता की शाश्वत घोषणा है हमारे विचार, शब्द और कर्म, वे धागे हैं, जिनसे हम अपने चारों ओर एक जाल बुन लेते हैं । वर्तमान में जो कुछ भी घट रहा है, वह व्यक्ति को पसंद हो या नापसंद, उसी के चुनावों का परिणाम है, जो उसने कभी पहले किये होते हैं । कर्म, कारण और प्रभाव के नियम पर इन बातों पर ध्यान देकर आसानी से अमल किया जा सकता है आज से मैं हर चुनाव का साक्षी रहूंगा और इन चुनावों के प्रति पूर्णत: साक्षीत्व को अपनी चेतन जागरूकता तक ले जाऊंगा । जब भी मैं चुनाव करूंगा तो स्वयं से दो प्रश्न पूछूंगा, जो चुनाव मैं करने जा रहा हूं, उसके नतीजे क्या होंगे और क्या यह चुनाव मेरे और इससे प्रभावित होने वाले लोगों के लिए लाभदायक और इच्छा की पूॢत करने वाला होगा। यदि चुनाव की अनुभूति सुखद है तो मैं यथाशीघ्र वह काम करूंगा, लेकिन यदि अनुभूति द:ुखद होगी तो मैं रुककर अंतर्मन में अपने कर्म के परिणामों पर एक नजर डालूंगा । इस प्रकार मैं अपने तथा मेरे आसपास के जो लोग हैं, उनके लिए सही निर्णय लेने में सक्षम हो सकूंगा।
सफलता का चौथा नियम अल्प प्रयास का नियम है । यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति प्रयत्न रहित सरलता और अत्यधिक आजादी से काम करती है । यही अल्प प्रयास यानी विरोध रहित प्रयास का नियम है । प्रकृति के काम पर ध्यान देने पर पता चलता है कि उसमें सब कुछ सहजता से गतिमान है । घास उगने की कोशिश नहीं करती, स्वयं उग आती है । मछलियां तैरने की कोशिश नहीं करतीं, खुद तैरने लगती हैं, फूल खिलने की कोशिश नहीं करते, खुद खिलने लगते हैं और पक्षी उडने की कोशिश किए बिना स्वयं ही उडते हैं । यह उनकी स्वाभाविक प्रकृति है । इसी तरह मनुष्य की प्रकृति है कि वह अपने सपनों को बिना किसी कठिन प्रयास के भौतिक रूप दे सकता है । मनुष्य के भीतर कहीं हल्का सा विचार छिपा रहता है, जो बिना किसी प्रयास के मूर्त रूप ले लेता है । इसी को सामान्यत: चमत्कार कहते हैं, लेकिन वास्तव में यह अल्प प्रयास का नियम है।
अल्प प्रयास के नियम का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए इन बातों पर ध्यान देना होगा मैं स्वीकृति का अभ्यास करूंगा । आज से मैं घटनाओं, स्थितियों, परिस्थितियों और लोगों को जैसे हैं, वैसे ही स्वीकार करूंगा, उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार ढालने की कोशिश नहीं करूंगा । मैं यह जान लूंगा कि यह क्षण जैसा है, वैसा ही होना था, क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ऐसा ही है । मैं इस क्षण का विरोध करके पूरे ब्रह्मांड से संघर्ष नहीं करूंगा, मेरी स्वीकृति पूर्ण होगी । मैं उन स्थितियों का, जिन्हें मैं समस्या समझ रहा था, उनका उत्तरदायित्व स्वयं पर लूंगा । किसी दूसरे को अपनी स्थिति के लिए दोषी नहीं ठहराऊंगा । मैं यह समझूंगा कि प्रत्येक समस्या में सुअवसर छिपा है और यही सावधानी मुझे जीवन में स्थितियों का लाभ उठाकर भविष्य संवारने का मौका देगी । मेरी आज की जागृति आगे चलकर रक्षाहीनता में बदल जाएगी । मुझे अपने विचारों का पक्ष लेने की कोई जरूरत नहीं पडेगी । अपने विचारों को दूसरों पर थोपने की जरूरत भी महसूस नहीं होगी । मैं सभी विचारों के लिए अपने आपको स्वतंत्र रखूंगा ताकि एक विचार से बंधा नहीं रहूं।
सफलता का पांचवां आध्यात्मिक नियम उद्देश्य और इच्छा का नियम बताया गया है । यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति में ऊर्जा और ज्ञान हर जगह विद्यमान है । सत्य तो यह है कि क्वांटम क्षेत्र में ऊर्जा और ज्ञान के अलावा और कुछ है ही नहीं । यह क्षेत्र विशुद्ध चेतना और सामथ्र्य का ही दूसरा रूप है, जो उद्देश्य और इच्छा से प्रभावित रहता है । ऋग्वेद में उल्लेख है प्रारंभ में सिर्फ इच्छा ही थी जो मस्तिष्क का प्रथम बीज थी । मुनियों ने अपने मन पर ध्यान केन्द्रित किया और उन्हें अन्र्तज्ञान प्राप्त हुआ कि प्रकट और अप्रकट एक ही है । उद्देश्य और इच्छा के नियम का पालन करने के लिए व्यक्ति को इन बातों पर ध्यान देना होगा उसे अपनी सभी इच्छाओं को त्यागकर उन्हें रचना के गर्त के हवाले करना होगा और विश्वास कायम रखना होगा कि यदि इच्छा पूरी नहीं होती है तो उसके पीछे भी कोई उचित कारण होगा । हो सकता है कि प्रकृति ने उसके लिए इससे भी अधिक कुछ सोच रखा हो । व्यक्ति को अपने प्रत्येक कर्म में वर्तमान के प्रति सतर्कता का अभ्यास करना होगा और उसे ज्यों का त्यों स्वीकार करना होगा लेकिन उसे साथ ही अपने भविष्य को उपयुक्त इच्छाओं ओर ²ढ उद्देश्यों से संवारना होगा।
सफलता का छठा आध्यात्मिक नियम अनासक्ति का नियम है । इस नियम के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संसार में कुछ भी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं के प्रति मोह त्यागना होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उद्देश्यों को ही छोड दे । उसे केवल परिणाम के प्रति मोह को त्यागना है । व्यक्ति जैसे ही परिणाम के प्रति मोह छोड देता है, उसी वह अपने एकमात्र उद्देश्य को अनासक्ति से जोड लेता है । तब वह जो कुछ भी चाहता है, उसे स्वयमेव मिल जाता है । अनासक्ति के नियम का पालन करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना होगा आज मैं अनासक्त रहने का वायदा करता हूं । मैं स्वयं को तथा आसपास के लोगों को पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहने की आजादी दूंगा । चीजों को कैसा होना चाहिए, इस विषय पर भी अपनी राय किसी पर थोपूंगा नहीं । मैं जबरदस्ती समस्याओं के समाधान खोजकर नयी समस्याओं को जन्म नहीं दूंगा । मैं चीजों को अनासक्त भाव से लूंगा । सब कुछ जितना अनिश्चित होगा, मैं उतना ही अधिक सुरक्षित महसूस करूंगा क्योंकि अनिश्चितता ही मेरे लिए स्वतंत्रता का मार्ग सिद्ध होगी । अनिश्चितता को समझते हुए मैं अपनी सुरक्षा की खोज करूंगा।
सफलता का सातवां आध्यात्मिक नियम, धर्म का नियम, है । संस्कृत में धर्म का शाब्दिक अर्थ जीवन का उद्देश्य बताया गया है । धर्म या जीवन के उद्देश्य का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए व्यक्ति को इन विचारों पर ध्यान देना होगा मैं अपनी असाधारण योग्यताओं की सूची तैयार करूंगा और फिर इस असाधारण योग्यता को व्यक्त करने के लिए किए जाने वाले उपायों की भी सूची बनाऊंगा । अपनी योग्यता को पहचानकर उसका इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करूंगा और समय की सीमा से परे होकर अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को भी सुख,समृद्धि से भर दूंगा । हर दिन खुद से पूछूंगा मैं दूसरों का सहायक कैसे बनूं और किस प्रकार मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं । इन प्रश्नों के उत्तरों की सहायता से मैं मानव मात्र की प्रेमपूर्वक सेवा करूंगा।
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