छोटू गया था ममता के घर. उस दिन ममता का जन्मदिन था. उस दिन उसके पिता भी नहीं थे घर पर. वो ममता को अपनी बाइक पर बैठा कर मंदिर घूमाने के लिए भी ले कर गया था. उस दिन छोटू तो बहुत खुश था, लेकिन, शाम को ममता के पिताजी ने ममता और उसकी माँ को बहुत मारा था, इस बात पर कि इस लड़की को किससे पूछ कर छोटू के साथ जाने दिया ?
छोटू और ममता
बात कुछ बरस पुरानी ही है. मैं ज़िंदगी में घोर अकेलेपन और मुसीबतों से जूझ रहा था. सभी चीजों से विश्वास उठता चला जा रहा था. हाँ, भगवान् पर से भी. एक बुरा दौर मेरे आसपास मंडरा रहा था. एक साथी मिला, जिसे पैसों की ज़रुरत थी और मुझे मेरा अकेलापन तोड़कर बाहर आने की तलब. कुल जमा बैंक बैलेंस निकाल कर मैंने उस करीबी रिश्तेदार लड़के के साथ एक छोटा सा बिज़नेस डालने की हामी भर दी. जल्द ही एक दुकान हमने ढूंढ निकाली. किस्मत कहूँ या कुछ और, आज भी समझ में नहीं आता. ये दुकान एक मुस्लिम बस्ती में थी. खैर, यहाँ खूब रौनक थी. दिनभर चिल्लपों रहती थी. पहली बार जिंदगी में ऐसी कुछ कोशिश थी मेरी. अनुभव जिंदगी भर नौकरी का था. दुनियादारी का अनुभव कहो या बाहर की दुनिया कैसी है, ये कभी सोचा भी नहीं था. नौकरी से घर और घर से नौकरी पर जाने से ज्यादा दुनियादारी मुझे मालूम नहीं थी.
गर्मीयों के दिन थे. मैं अपना कंप्यूटर लेकर वहां बैठ तो गया था, लेकिन आगे क्या, कुछ नहीं जानता था. साथ के लड़के को एक प्रिंटिंग प्रेस दिलवा दी थी और दुकान की पगड़ी और किराये में भी मैंने अपना हिस्सा दिया था. एक बैठक या कहो मेरा तो टाइमपास शुरू हो गया था. साथ के लड़के की कुछ जान पहचान थी. वो करीब ही एक प्रेस में नौकरी कर रहा था. और उसे छोड़ने के लिए मेरे साथ हो लिया था. उसे काफी भरोसा दिलाने पर एक महीना लगा, आखिर उसने नौकरी छोड़ दी, पर थोड़ा घबराया हुआ था. उसके साथ जिम्मेदारियां भी थी. एक छोटा भाई भी था उसका, जो हमारे साथ ही काम करता था. बहुत बाद में पता चला कि छोटू कुछ बिगड़ा हुआ था और इस कारण उसे कैंसर हो गया था. वो कुछ तुतला कर बोलता था. दोनों भाई मुझे मामा कहते थे. बड़ा भाई अक्सर मुझसे कहता था कि छोटू को समझाओ, लेकिन छोटू काफी मेहनती था. इसलिए उसके आत्मसम्मान को देखते हुए मैं कभी उसे टोकता नहीं था. वो एक मशीन के जैसा अपना काम ८- ९ घंटे लगातार करता रहता था. छोटू बोलता बहुत कम था. काफी बाद में पता चला कि उसके मुँह में गुटखा हमेशा भरा रहता था.
हमारी दुकान सड़क से कुछ ऊँची और गली के नुक्कड़ पर थी. आसपास बहुत सारे बच्चे खेलते रहते थे. कुछ बच्चे तो बहुत छोटे थे. उसमें से एक था नज़ीर, जो अक्सर मेरी गोद में आकर बैठा रहता था. मेरी दुकान के सामने ही उसका घर था. मेरे कंप्यूटर पर हमेशा ही मेरे मनपसंद गाने बजते रहते थे. वहां के कुछ बड़े-बूढ़े नाराज भी थे, पर कभी कुछ कहते नहीं थे. उन गानों को पसंद करने वाले ज्यादा थे शायद. ज्यादातर मुझे अच्छा आदमी मानते थे. बच्चे खूब शैतानी करते थे. मैं अक्सर देखता था कि छोटी-छोटी लड़कियां भी लड़कों जैसी गलियां देती थी. मैं कभी-कभार समझाने को कोशिश भी करता था. लेकिन वहां का माहौल मधुमक्खी के छत्ते में पत्थर मारने के जैसा था. कई बार १०- १५ बच्चे एकसाथ ऊपर दुकान पर आ जाते थे. अंकलजी, ये क्या है, वो क्या है. पूछते रहते थे. मैं भी उनसे बात कर खुश हो लेता था. समय अच्छा गुजर रहा था. लेकिन बिज़नेस कुछ नहीं था वहां. मैं अपने पास एक डिजीटल कैमरा हमेशा रखता था. कभी-कभी बच्चों के फोटो खींचकर कंप्यूटर में डाल लेता. बच्चे उन फोटो को देखकर बहुत खुश होते. फिर में बच्चों को उनके फोटो की प्रिंट निकाल कर भी मुफ्त में दे दिया करता था. वो और ज्यादा खुश हो जाते और मेरा भी मन लगा रहता. जहाँ तक मुझे याद है वहां के सभी बच्चों के घरों पर मेरे कैमरे से लिए फोटोग्राफ थे. कभी-कभी कुछ काम भी आ जाता था मन को समझाने के लिए. मुझे बाजार का अनुभवी नहीं होने से मैं हमेशा ही नुकसान में रहा. सभी इस बात का फायदा उठाते थे. मैं भी दुनियादारी सीखने के बहाने चुपचाप दुनिया को ऐसा करते देखते रहता था. समझता था, पर चुपचाप रहता था.
दिल के भीतर एक घोर अकेलापन, कुछ ख़राब मुकद्दर और जीना भी ज़रूरी था. जेब धीरे-धीरे ख़ाली होती जा रही थी. खर्च इतना भी जेब में अक्सर नहीं रहता था. लेकिन मेरे साथ का लड़का और छोटू अच्छे से कमा-खा रहे थे. ये दोनों भाई बाजार का अनुभव रखते थे. लेकिन दोनों के अनुभव सीमित थे. ज्यादा बड़ा कुछ करने की नहीं सोचते थे. कुए के मेंढक जैसे दोनों के विचार थे. दुनिया सिमटी हुई थी इनकी. घोर गरीबी में जिंदगी गुज़री थी इन दोनों की, पर कर्मठ दोनों ही थे. इन दोनों के तीन सगे मामा थे, लेकिन इन्हें कोई पूछता भी नहीं था. मुझ नकली मामा की पूछपरख थी इनकी निगाहों में. इन दोनों ने मुझे जगत मामा बना दिया था. मिलने-जुलने वाले भी मुझे मामा-मामा कहने लगे. वक्त गुजरने लगा. मैं दोनों भाइयों का हौंसला बढ़ाता रहता था, मेरे कारण बाहरी खतरों से ये अपने आप को सुरक्षित समझते थे. कई छोटी- बड़ी घटनाएं होती रहती थी.
समय कुछ आगे खिसका. छोटू की शादी की बात निकली. छोटू बार-बार घर पर खुद की शादी के लिए जिद करने लगा था. मुझे उसके कैंसर का पता था. मैंने उसके बड़े भाई को सुझाव दिया कि पहले इलाज करवाओ, फिर शादी की सोचना. मुझे उसने इस बात के विरोध में आँखे दिखा दीं. १७ बरस की लड़की ममता को नोटरी पर लिखकर १८ की बता कर फटाफट शादी निकाल ली. लड़की का पिता बेरोजगार था और शराबी भी था. आये दिन बीबी-बच्चों से मारपीट करता रहता था. गरीबी तो थी ही. वो अगर एक बार भी छोटू से होशोहवास में बात कर लेता, तो समझ जाता कि सही जगह रिश्ता नहीं कर रहा है. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था.
७ मई को छोटू की शादी कर दी गई. बड़े भाई ने कहा- मामा, तुम तो शादी में भी फटी पेंट पहन कर आए थे. मैं भी क्या जवाब देता. मेरा दिल इस शादी के लिए राजी नहीं था. शादी के दो महीने बाद ही ये बात खुल गई कि छोटू को कैंसर है. लड़की का बाप भड़क गया या कहो कि होश में आ गया. कहने लगा- तुमने हमें धोखा दिया है. छोटू को मुंह का कैंसर था. शादी के बाद बीमारी तेजी से बढ़ने लगी. ममता को उसके पिता अपने घर ले गए. अगले चार महीने बाद तो छोटू बोल भी नहीं पता था. छोटू ममता के लिए तड़फता था. लड़की भी गरीब घर की थी. कुछ उसे दुनियादारी की समझ नहीं थी. वो छोटू को चाहने लगी थी. लेकिन दोनों ओर के समझदार इनकी भावनाओं से अब कोई वास्ता नहीं रखते थे.
शादी के एक साल अभी पूरे भी नहीं हुए थे. उसका बड़ा भाई और मैं, छोटू की मौत करीब देख रहे थे. ऐसा नहीं था कि इलाज नहीं करवा रहे थे, लेकिन छोटू परहेजी नहीं था. उसका पीना-खाना दोनों वैसा ही था. शायद उसके जबड़े के कैंसर में गुटखा खाने या शराब पीने से उसे कुछ राहत मिलती होगी. मैंने दोनों पक्षों को समझाया कि लड़ाइयों से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है. ठीक एक साल बाद ७ मई को ही दोनों का तलाक १००-२०० रुपयों की नोटरी पर राजीमर्जी से करा लिया. कोर्ट से दोनों अकेले खेलते-कूदते पैदल ही दुकान पर आये. कोर्ट से ऑफिस आधा किलोमीटर दूर था. छोटू तो कुछ बोल नहीं पा रहा था. हाँ, पर ममता बहुत खुश हो रही थी. ममता अपने पापा की बहुत तारीफ कर रही थी. मैंने उन दोनों के फोटो कंप्यूटर से ममता को दिखाए. कहने लगी- मामाजी, देखो तो मेरी जिंदगी कितनी अच्छी निकल रही थी, कितने मजे थे जिंदगी में. मैंने सोचा था इनकी शादी की वर्षगांठ पर तो तलाक नहीं हो. लेकिन होनी को कौन टाल सकता है.
चार-पांच महीने पहले ही ममता १८ बरस की हो गई थी. तब छोटू ने मुझसे पूछा था- मामा, ममता से कैसे मिलूं ? मैंने कहा था- बहुत सारी चॉकलेट ले जाना उसके लिए. छोटू गया था ममता के घर. उस दिन ममता का जन्मदिन था. उस दिन उसके पिता भी नहीं थे घर पर. वो ममता को अपनी बाइक पर बैठा कर मंदिर घूमाने के लिए भी ले कर गया था. उस दिन छोटू तो बहुत खुश था, लेकिन, शाम को ममता के पिताजी ने ममता और उसकी माँ को बहुत मारा था, इस बात पर कि इस लड़की को किससे पूछ कर छोटू के साथ जाने दिया ?
तलाक के बाद ममता की एक ब्याहता पुरुष के साथ नई जिंदगी की शुरुआत हो चुकी थी और उसके ८ महीने बाद २२ दिसंबर को छोटू अपनी तकलीफों को चुपचाप सहते हुए इस जीवन से मुक्त हो गया.